सोमवार, 7 सितंबर 2009

बेटी मन का गहना हो ...

ऐसे मन को तुम संबल देना पूरे मन से,

जिसके आंगन में बेटी मन का गहना हो ।

रीत निभाते जीवन की करके कन्‍यादान कैसे,

पूछो उस बाबुल से जिसके मन को सहना हो ।

आंखों में आंसू होते चेहरे पर संतोष की छाया,

जब विदाई के पल में इन अश्‍कों का बहना हो ।

नाजों पली वो नन्हीं कली मेरे आंगन में अब तक,

थी खुशियां बहुत इसके होने से जब कुछ कहना हो ।

अपनी जाई को सारा जीवन कहा है, पराई है बेटी तू,

दुखी मन होवे तो होवे, नहीं ये किसी से कहना हो ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति बिटिया के प्रति । कोटिशः आभार ।

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  2. बेटियाँ पराई नही होती, हमी उसको पराया कर देते है.
    बहुत सुन्दर

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  3. बस बेती का यही एक दर्द है कि अपने जिगर के टुकडे को किसी को सौंप देना पर समाज की संरचना के लिये ये भी जरूरी है सुन्दर कविता बेटी आशीर्वाद् को

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  4. कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना....
    सादर....

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