मंगलवार, 13 मार्च 2012

बेटियों को नेमत समझें ....

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कोई बिटिया मां के आंचल में छिपी कोई मेरे कांधे चढ़ी,
मैं इनकी हंसी के बीच यूं सदा हंसता खिलखिलाता रहा ।

खबर पढ़ता कोई बुरी अखबार में या सुनता कहीं तो
मैं रह-रह के वक्‍त और हालात पर तिलमिलाता रहा ।

कोई मासूम जान आने से पहले धरा पर कत्‍ल होती, 
तब-तब कोई आंसू मेरी आंख में झिलमिलाता रहा ।

निशाने पे जाने कितनी और ज़ाने होंगी अभी यहां,
बेबसी पर उनकी मेरा अन्‍तर्मन बिलबिलाता रहा ।

इरादों को इनके नेक नीयत बख्‍श दे या खुदा अब तो,
बेटियों को नेमत समझें मन में ये इल्‍तज़ालाता रहा ।

16 टिप्‍पणियां:

  1. बेटियों को नेमत समझना ही चाहिये।


    सादर

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  2. बहुत सुन्दर भावनाएं ...
    जाने वो दिन कब आएगा...
    सस्नेह.

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  3. कल 15/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. इरादों को इनके नेक नीयत बख्‍श दे या खुदा अब तो,
    बेटियों को नेमत समझें मन में ये इल्‍तज़ालाता रहा ।
    .....बहुत सारे लोगों की मनोकामना जुडी है आपसे ...काश ! बहुत सुन्दर रचना

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  5. सच है बेटिया तो वरदान होती है..सुन्दर प्रस्तुति..

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  6. बेशक.....इन नेमतों पर हमें नाज है....ये धरती की आब हैं....!!

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  7. नवाज देवबंदी की दो लाइनें याद आ रही हैं..

    वो रुलाकर हस ना पाया देर तक
    जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक

    नाहलक बेटे तो दर्दे सर बनें
    बेटियों ने सर दवाया देर तक

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  8. behtreen prastuti, sundar aur bhavpurn kavita.
    Betiyan ghar ki raunak hain,
    Salute to you!

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  9. भाव भरी रचना ह्रदय को छू गई,अति सुन्दर...

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