गुरुवार, 1 नवंबर 2012

तुम्‍हारे बारे में ...!!!

मां सोचती हूँ कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में
जब भी तो बस यही ख्‍याल आता है
क्‍या कभी शब्‍दों में व्‍यक्‍त हो सकता है
तुम्‍हारा प्‍यार  तुम्‍हारा समर्पण,
तुम्‍हारी ममता
तुम्‍हारा निस्‍वार्थ भाव से किया गया
हर बच्‍चे से समानता का स्‍नेह
.......
मां तुम्‍हारा उदाहरण जब भी दिया
देव मुस्‍कराये पवन शांत भाव से बहने लगी
नदिया की कलकल का स्‍वर मधुर लगने लगा
हर शय छोटी प्रतीत होती है उस वक्‍त
जब भी बाँहें फैलाकर जरा-सा तुम मुस्करा देती हो 
सोचती हूँ जब भी कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में
.....
खुशियों का अर्थ मेरे लिये
तुम्‍हारी मुस्‍कान होती है मां
तुम्‍हें पता है तुम्‍हारी उदासी
मेरी हँसी छीन लेती है
तुम्‍हारे आंसू
झंझोड़ देते हैं मेरा अन्‍तर्मन
बेबस हो जाती हूँ उन लम्‍हों में
जिनमें तुम्‍हारे विश्‍वास का
खून होता है
सोचती हूँ जब भी कई बार
तुम्‍हारा प्‍यार  और तुम्‍हारे बारे में !!

बुधवार, 18 जुलाई 2012

ना मेरी ना तुम्‍हारी !!!














माँ 
ये शब्‍द जब भी सुनती हूँ
कहीं पढ़ती हूँ
एक ख्‍याल बन तुम
उतर जाती हो सीधे मन में
कभी गुनगुनाती हो
कोई मीठी धुन
कभी कोई सुगंध बन
महका जाती हो चितवन
तुम्‍हारा ख्‍याल
हर ख्‍याल से प्‍यारा लगता है
उसमें होती है
एक स्‍नेह भरी मुस्‍कान
तुम्‍हारी आहट बिन
मन में अकुलाहट सी होती है
क्‍यूँ ... भला
मैं तो हमेशा तुम्‍हारे पास होती हूँ
कहती हो तुम हमेशा
मेरे सिर पर
एक हल्‍की सी चपत लगा के
पर क्‍या करूं माँ
तुम याद आती हो तो फिर आती हो
फिर तुम्‍हारा ख्‍याल सब पर
भारी हो जाता है
किसी की नहीं सुनता
ना मेरी ना तुम्‍हारी !!!
...

शुक्रवार, 29 जून 2012

जब भी कभी जिन्‍दगी हंसती है ...

बड़ा नज़दीक का रिश्‍ता है
जिन्‍दगी से जिन्‍दगी का
इसके बिना
जिन्‍दगी के अर्थ
समझ ही नहीं आते
व्‍यर्थ लगता है
सबकुछ
...
जिन्‍दगी की आंखों में
आंखे डालकर  जब भी कभी
जिन्‍दगी हंसती है  सपने सजाती है
अपनी उंगलियों से उसका
सर सहलाती है 
समझती है उसके
मौन संवाद को
पढ़ती है उसकी आंखो में प्‍यार को
बेखौफ़ होकर सौंप देती है खुद को वो
उसकी हथेलियों में
फिर चाहे वो कितना भी उछाले
हवा में उसको
उसके चेहरे पर मुस्‍कान होती है
आंखों में झांकता है विश्‍वास
वो उसे संभाल लेगी
...

मंगलवार, 1 मई 2012

बेटी को पराई ...












आपने देखा होगा,
आपने जाना होगा,
दिल ने इजाजत दी हो,
या नहीं,
पर आपने माना होगा ।
रिवाज के नाम पर,
रस्‍मों की दुहाई देते लोग ।
लहू के नाम पर,
रिश्‍तों  की दुहाई देते लोग ।

जन्‍म देने वाली,
होती एक मां
फिर भी बेटे को,
कुल का दीपक,
बेटी को पराई ही,
सदा कहते लोग.... 


थाम के उंगली चलना छोड़ दे ... 

उसे लिखना तो नहीं आता
पर वो अश्‍कों की नमी के बीच
हिचकियों के साये में
अटक - अटक कर बोल रही थी
इन शब्‍दों को
मन द्रवित हो गया ...
माँ
मुझे तुम
खेलने को खिलौना मत दो
पर मेरे मन को
यह मत कहो कि
वह खिलौना देखकर
मचलना छोड़ दे  ...
मेरे मन का बच्‍चा अभी भी
तुम्‍हारे साये में चलता है
उससे ये मत कहो
कि वो तुम्‍हारी
थाम के उंगली चलना छोड़ दे ...!!!

मंगलवार, 13 मार्च 2012

बेटियों को नेमत समझें ....

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कोई बिटिया मां के आंचल में छिपी कोई मेरे कांधे चढ़ी,
मैं इनकी हंसी के बीच यूं सदा हंसता खिलखिलाता रहा ।

खबर पढ़ता कोई बुरी अखबार में या सुनता कहीं तो
मैं रह-रह के वक्‍त और हालात पर तिलमिलाता रहा ।

कोई मासूम जान आने से पहले धरा पर कत्‍ल होती, 
तब-तब कोई आंसू मेरी आंख में झिलमिलाता रहा ।

निशाने पे जाने कितनी और ज़ाने होंगी अभी यहां,
बेबसी पर उनकी मेरा अन्‍तर्मन बिलबिलाता रहा ।

इरादों को इनके नेक नीयत बख्‍श दे या खुदा अब तो,
बेटियों को नेमत समझें मन में ये इल्‍तज़ालाता रहा ।

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

विश्‍वास ..... !!!













विश्‍वास का मंत्र
बचपन से ही मेरे कानों में
पढ़ा था मॉं ने
जब भी उछालते थे बाबा
हवा में मुझे
मैं बिना भय के मुस्‍कराते हुए 
इंतजार करती  कब वो मुझे
अपनी हथेलियों में थाम लेंगे ...
देखा था मेले में मैने
उस छोटी लड़की को जो
पतली सी रस्‍सी पर आगे बढ़ते हुए
विश्‍वास के साथ हर कदम को
मजबूती से रखते हुए  ....
यह विश्‍वास शब्‍द
कितना छोटा सा है
किसी पर हो जाए तो फिर
आसानी से नहीं टूटता
यदि नहीं है किसी पर तो कोई
कितनी भी कोशिश कर ले उसपर
विश्‍वास नहीं होता ...

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

ये बचपन के पल.....














खुशियों का मेला लगता है
बचपन की गलियों में
हर कोई अपने में मस्‍त
फिक्र के साये
दूर खड़े झुंझलाते रहते  हैं बस

................
हर चीज़ बिखरी रहती है
कितना भी समेटो
उसे तो बस  वही चाहिए होता है
जो चीज़ करीने से रखी होती
सोफे के कवर
उसे ज़मीन पर अच्‍छे लगते
खिलौने पलंग पर बिखरे
मस्‍ती का आलम
जिसको देखो मुंह पे उंगली रख
डांट कर चुप करा देती
जब चाहे किसी के कान खींच देती
उसकी तोतली बोली सुन  बड़े भी वही
रोटी को तोती पानी को मम कहते
उसके होने से बचपन लौट आता है
उम्र दूर खड़ी देखती रहती है
ये बचपन के पल ही
बस हर पल सच्‍चे होते है ...

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

'मैं तो तुम्हारे पास हूँ ...'

मॉं कैसे तुम्‍हें
एक शब्‍द मान लूँ
दुनिया हो मेरी 
पूरी तुम 
ऑंखे खुलने से लेकर 
पलकों के मुंदने तक 
तुम सोचती हो 
मेरे ही बारे में 
हर छोटी से छोटी खुशी 
समेट लेती हो 
अपने ऑंचल में यूँ 
जैसे खज़ाना पा लिया हो कोई 
सोचती हूँ ...
यह शब्‍द दुनिया कैसे हो गया मेरी 
पकड़ी थी उंगली जब 
पहला कदम 
उठाया था चलने को 
तब भी ... 
और अब भी ...मुझसे पहले 
मेरी हर मुश्किल में 
तुम खड़ी हो जाती हो 
और मैं बेपरवाह हो 
सोचती हूँ

मॉं हैं न सब संभाल लेंगी ..... 

मॉं की कलम मेरे लिए .... 

लगता है 
किसी मासूम बच्चे ने
मेरा आँचल पकड़ लिया हो 
जब जब मुड़के देखती हूँ
उसकी मुस्कान में 
बस एक बात होती है
'मैं भी साथ ...'
और मैं उसकी मासूमियत पर 
न्योछावर हो जाती हूँ
आशीषों से भर देती हूँ
कहती हूँ 
'मैं तो तुम्हारे पास हूँ ...'

बुधवार, 25 जनवरी 2012

मैं निश्चिन्‍त सी यूँ ...


















बेफिक्री की चादर ओढ़ी है मैने जब से
मां फिक्र के साये में रहने लगी है
कब मैं बड़ी होऊंगी
मेरी नादानियों पे कभी-कभी
वो खफ़ा होने लगी है
ये भागती दौड़ती जिन्‍दगी जहां
खुशियों का ठौर नहीं
मेरी ख्‍वाहिशें इनमें गुम न जाएं कहीं
मां की हिदायतें मेरे लिए
समझाइशें होने लगी हैं ...
मैं निश्चिन्‍त सी यूँ
जैसे कोई बूंद बारिश की
जो बेपरवाह सी
कभी पत्‍तों पर ठहर जाएगी
या धरती के सीने में
ज़ज्‍ब हुई तो
सोंधी सी महक बन
फिज़ाओं में घुल जाएगी
नदिया में पड़ी जो
कलकल की ध्‍वनि बन
पहाड़ों का सीना
छलनी कर इक धारा बन
सागर में मिल जाएगी ...
इस चंचलता में
मेरे संग एक मुस्‍कान
ओढ़कर मुस्‍काती है मां
और भावुक होकर कहती है
तुम कुछ भी बनना
लेकिन किसी के
निगाहों की नमी मत बनना
ये नमी किसी कमी का
अहसास दिला जाती है ....

सोमवार, 2 जनवरी 2012

नन्‍हीं कली के हौसले उम्‍मीद भरे ...!!!


















हौसले उम्‍मीद भरे
पंजे के बल उछलना
पकड़ना टहनी को
ये ज़ौहर है  उनका जो
कुछ कर गुज़रना चाहते हैं
ऐसे ही एहसास हैं
मेरे आंगन में
हर खुशी को पकड़ती
चंचल हंसी से
मन को मोहती नन्‍हीं कली के  ...!!
कोशिशें जब से
दस्‍तक देना सीख गई थीं,
तभी तो वह जब तब
हारकर भी नहीं हारती थी हिम्‍मत
निराशा के क्षणों में
उसका मस्तिष्‍क विचारों की
रूपरेखा तैयार करता
समय से सीखती रोज़ कैसे
एक नया दिन आता है
समय ठहरता नहीं जब तो
वो क्‍यूं ठहरे भला ...
हारे हुए दिल को अक्‍़सर वह
यही मंत्र दिया करती थी
जाप करने के लिए
विजेता बनने का हथियार है
कर्म से विमुख मत बनो
अवश्‍य विजयी होगे  ...
निश्‍चय पर अडिग हुए हो तो ...!!!