बहुत प्रिय थी
बचपन से
माथे पे छोटी सी
बिंदी
उतना ही पंसद था
नदी में तैरना
जितनी बार मौका
मिलता
झट से तैरने चल
देती
और बिंदी बह जाती
J
तब आज की तरह
नहीं होती थी
विभिन्नता
मेरी बिंदी प्रेम
को देख
माँ ले आई थी
कुमकुम की शीशी
जितनी बार चाहो
लगा लो
छोटी सी बिंदी
और माथे से ज्यादा
चमक उठती थीं
आँखे J
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंवाह! क्या सुंदर रचना लिखी है आपने....इस रचना में सच्चाई झलकती है...आपको इस रचना के लिए शुभकामना.....ऐसी रचनाओं को आप शब्दनगरी
जवाब देंहटाएंमें प्रकाशित कर शब्दनगरी
के पाठकों को अनुगृहित करें......
Ji atynt aabhar aapka ....
हटाएंSadar
सदा जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !!
खास बात ये है की आपके लेख बेहद रोचक होते है । यह महिलाओ के लिए प्रेरणास्तोत्र है । इन्टरनेट पर अभी भी कई बेहतरीन रचनाएं अंग्रेज़ी भाषा में ही हैं, जिसके कारण आम हिंदीभाषी लोग इन महत्वपूर्ण आलेखों से जुड़े संदेशों या बातों जिनसे उनके जीवन में वास्तव में बदलाव हो सकता है, से वंचित रह जाते हैं| ऐसे हिन्दीभाषी यूजर्स के लिए ही हम आपके अमूल्य सहयोग की अपेक्षा रखते हैं ।
इस क्रम में हमारा विनम्र निवेदन है कि आप अपने लेख “शब्दनगरी" www.shabdanagri.in पर आपके नाम के साथ प्रकाशित करें । इस संबंध में आपसे विस्तार से बात करने हेतु आपसे निवेदन है की आप हमसे अपना कोई कांटैक्ट नंबर शेयर करें ताकि आपके रचना प्रकाशन से संबन्धित कुछ अन्य लाभ या जानकारी भी हम आपसे साझा कर सकें ।
साथ ही हमारा यह भी प्रयास होगा की शब्दनगरी द्वारा सभी यूज़र्स को भेजी जानी वाली साप्ताहिक ईमेल में हम आपके लेखों का लिंक दे कर, आपकी रचनाओं को अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाएँ ।
उम्मीद है हमारी इस छोटी सी कोशिश में आप हमारा साथ अवश्य देंगे ।
आपके उत्तर की प्रतीक्षा है ...
धन्यवाद,
संजना पाण्डेय
शब्दनगरी संगठन
फोन : 0512-6795382
ईमेल-info@shabdanagari.in
sssinghals@gmail.com
हटाएंaap is pr sambndhit jankari mail kr sakte hain ....
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