बुधवार, 2 सितंबर 2009

गिर जाती कभी . . . .


बाहों के झूले में चुप हो जाती

सपनों की दुनिया में खो जाती

कभी मुस्‍काती सोते-सोते जब,

मां तो बस तुझमें खो जाती ।

खिलौने हांथ में लेकर वह मुझे,

नन्‍हें कदमों से कभी देने आती ।

पैर धरती पर रखती तो लगता,

उड़ रही हो देख मुझे भाग आती ।

गिर जाती कभी घुटनों के बल वह,

आकर मुस्‍कान से छुपाने लग जाती ।

नयनों से उसके ओझल होती मैं जब,

वह ढूंढती चारों ओर मां कहती जाती ।


आपने भी कुछ लिखा हो लाडली के लिये तो भेजें यहां

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सदा जी बेटियों की याद दिला दी बहुत सुन्दर कविता है बच्चों के साथ खुद उन पलों को जीना कितना अच्छा लगता है बधाई

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  2. आपकी लाडली पर मैं बारी-बारी जाऊं ............प्यारी गुडियां आई लव यू ...................बेटा

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  3. बाहों के झूले में चुप हो जाती

    सपनों की दुनिया में खो जाती


    कभी मुस्‍काती सोते-सोते जब,

    मां तो बस तुझमें खो जाती ।
    लाजवाब रचना
    बचपन तो बचपन होता हॆ,बचपन का क्या कहना
    बचपन में खोकर तो देखो,हर पल मधुर सलोना

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  4. तस्वीर औत काव्य दोनों ही शानदार हैं...लेखनी बेटियों को समर्पित करने के लिए बहुत बहु धन्यवाद।

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  5. सुन्दर रचना.....

    ...तस्वीर भी बहुत प्यारी है.

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  6. बेटी की मां होकर इस सुख को जाना..आपकी कविता ने भी माना..!!
    बहुत बधाई और शुभकामनायें ..!!

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  7. kyaa baat hai....aapne to yahaan gazab hi kiyaa hua hai.....mere jaisaa bhoot bhi yahaan par bheengaa hua hai......!!

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  8. बेहतरीन!

    ----
    कल 29/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. क्या बात है , आप को बहुत बहुत बधाई और यशवंत भाई को भी बहुत बहुत आभार ऐसे ऐसे पुराने रत्नों को खोज खोज़ कर सामने लाने के लिए

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  10. बालपन की कोमलता ओर ममतामयी माँ का सानिध्य ओर उसकी ममतामयी छावं में सहेजता बचपन ..बहुत ही भाव पूर्ण...सुन्दर अभिव्यक्ति ..शुभ कामनायें !!!

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