खुशियों का मेला लगता है
बचपन की गलियों में
हर कोई अपने में मस्त
फिक्र के साये
दूर खड़े झुंझलाते रहते हैं बस
................
हर चीज़ बिखरी रहती है
कितना भी समेटो
उसे तो बस वही चाहिए होता है
जो चीज़ करीने से रखी होती
सोफे के कवर
उसे ज़मीन पर अच्छे लगते
खिलौने पलंग पर बिखरे
मस्ती का आलम
जिसको देखो मुंह पे उंगली रख
डांट कर चुप करा देती
जब चाहे किसी के कान खींच देती
उसकी तोतली बोली सुन बड़े भी वही
रोटी को तोती पानी को मम कहते
उसके होने से बचपन लौट आता है
उम्र दूर खड़ी देखती रहती है
ये बचपन के पल ही
बस हर पल सच्चे होते है ...
bachpan hamesha hota hai ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरश्मि दी से सहमत.
सादर.
बचपन के यही पल तो जीवन की अनमोल निधि होते हैं ! अपने बच्चों की यहीं मधुर स्मृतियाँ मन में संजोये माता-पिता अक्सर वृद्धावस्था में भी मुस्कुरा पड़ते हैं और किसीको सुनाते हुए कितने उल्लसित और मुखर हो जाते हैं ! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंमन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,प्रभावी,मन को छूने वाली प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसुंदर ..बहुत प्यारी रचना .
जवाब देंहटाएंबचपन एक प्रक्रिया है जो बहुत प्यारी होती है. आपका यह ब्लॉग पहली बार देखा है. सुंदर रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंकल 20/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सबसे प्यारा समय होता है ये ...
जवाब देंहटाएंबचपन के पल ही सच्चे होते हैं ... उसके बाद तो झूठ और फरेब में पड़ जाता है इंसान
जवाब देंहटाएंबचपन ही सबसे यादगार समय होता है. सदा जी आपके इस ब्लॉग में तो मैं शायद पहली बार पहुँच पायी हूँ.
जवाब देंहटाएंये बचपन के पल ही हर पल सच्चे होते हैं ।
जवाब देंहटाएंबचपन जिन्दगी का सबसे शानदार हिस्सा है।
जवाब देंहटाएंबचपन के पल भी सच्चे और उससे मिलने वाली खुशियाँ भी बेहद हसीं जिन्हें हम ताउम्र संजो के रखते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर