गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

खुद रो पड़ती ...


मैं चलती

जब भी लड़खड़ा के

मां को जाने

क्‍यों लगता हैं

मैं गिर जाऊंगी

सच में

अंकल

मैं गिर भी जाती

जब

वो खुद दौड़ पड़ती

अपने गिरने की

परवाह किये बगैर

तब नानी कहती

अरे संभल के

गिर मत

जाना बेटा

पर मां को तो लगता

कहीं मैं रो ना दूं

और मैं मां को दौड़ते देख

चुपचाप एकदम

खामोश रह जाती

तब वह

खुद रो पड़ती

बेटा कहीं लगी तो नहीं

पूछती जाती

और उसके

आंसू बहते जाते .....।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत sentiments से भरपूर रचना.... रोना भी आ गया....

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  2. बहुत खूब कविता एक प्यारे चित्र के संग !

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  3. माँ को समर्पित हृदयस्पर्शी रचना ...!!

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  4. सच मे ये माँ बेटी का रिश्ता ही ऐसा है बहुत ही भावनात्मक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  5. माँ बेटी के भावात्मक सम्बन्ध को अभ्व्यक्त करती एक अच्छी रचना . शुभकामनायें !!

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  6. नव वर्ष की आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें....

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