मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मां तुम ....








मेरी आंखे नींद से

बोझिल होती हैं पर

उनमें नींद नहीं आती

बिन तुम्‍हारे

कोई गीत गुनगुनाए ।

सुबह को बिन तुम्‍हारे

जगाये जागने का

मन नहीं करता

जब तुम

प्‍यार से कहती हो

ऊं साईं राम

बेटा उठ जाओ

मेरी बंद पलकों

में तुम्‍हारी छवि

समा जाती

मां तुम

खामोश मत रहा करो

तुम्‍हारा मौन

मुझे विचलित कर देता है ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. "मेरी बंद पलकों
    में तुम्‍हारी छवि
    समा जाती
    मां तुम
    खामोश मत रहा करो
    तुम्‍हारा मौन
    मुझे विचलित कर देता है"

    आद. सदा जी,
    मन में गहरे तक समाती चली गयीं ये पंक्तियाँ

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  2. तुम्‍हारा मौन
    मुझे विचलित कर देता है"


    संवेदनशील ...मन में उतरती पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर

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  3. सभी कवितायें बहुत अच्छी हैं..............जितना भी कहा जाये कम है

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  4. माँ के मौन पर हर बच्चा बहुत विचलित हो जाता है ....एक माँ ही उसकी ताकत है .....शायद इसीलिए एक माँ दुखों के बीच भी मुस्कुराती है अपने बच्चों के लिए।

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  5. वहुत ही बढ़िया और संवेदनशील कविता... आज बहत दिनों के बाद ब्लॉग पर आना हुआ ... और अब आता रहूँगा...

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  6. मां तुम
    खामोश मत रहा करो
    तुम्‍हारा मौन
    मुझे विचलित कर देता है ...

    सीधे मन में उतर jati हैं ये panktiyaan ... kitna कुछ है inmen ....

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  7. बहुत सुन्दर कविता...प्यारी लगी.
    ______________________________
    'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !

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  8. मां तुम

    खामोश मत रहा करो

    तुम्‍हारा मौन

    मुझे विचलित कर देता है
    सच है. बहुत सुन्दर कविता.

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