मन ही मन मैं,
तेरा नाप लेकर,
बनाती रही तेरे,
तन के कपड़े
नहीं ये छोटा होगा,
नहीं ये होगा बड़ा,
करती खुद से जाने
कितने झगड़े
तन के कपड़े . . . ।
तू गोरी होगी,
या सांवरी
मैं भी बावरी बन
सजाती रही गुडि़या पे
तेरे वो कपड़े
तन के कपड़े . . . ।
झलक तेरी आंखों में
लेकर सोती तो,
ख्वाबों में फिरती
तुझको पकड़े-पकड़े
तन के कपड़े . . . ।
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूंगी
तू आ जाएगी तो
मिट जाएंगे सारे झगड़े
तन के कपड़े . . .।
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
जवाब देंहटाएंगहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसही बात है बच्चों मे फिर से अपना बचपन ढूँढती माँ को पता ही नही चलता कब बडी हो जाती है। सुन्दर रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंअंतर्द्वंद से घिरी सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंवात्सल्य रस से भीगी होने वाली मां इन्ही भावों में डूबी रहती है ...
जवाब देंहटाएंबेटी की मां होने का एहसास हम स्त्रियों के लिए बहुत खास होता है ...
उनके होने से पहले से ही ...
बहुत प्यारी रचना ...
कुछ ऐसा ही लिखा मैंने भी अपनी कविता " मैं पूर्ण हुई " में ..!
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंप्यारा एहसास :), इसे आपने शब्दों में बहुत खूबसूरती से पिरोया है.
प्यारा एहसास
जवाब देंहटाएंगहरा अहसास लिए बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
ममता के कई रूपों में एक अद्भुत रूप यह भी...वाह, बहुत खूब, बहुत प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
आपकी रचना में बयां किये अहसास हर माँ महसूस कर सकती है.....बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंBahut Khubsurat rachna...
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