सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

मां सुनती है ...








मैं खामोश रहूं तो

मां सुनती है

मेरी खामोशी को

पहचानने की

कोशिश करती है

हर आहट को

लेकिन मेरे आवाज देने पर

वह खुद छुप जाती है

हंसी को दबाकर

मुस्‍कराती है

यह लुका छिपी का खेल

मेरे साथ

अक्‍सर खेलती है वह

और मैं तो

हर खेल में

मां को

जीतते हुये

देखना चाहती हूं

पर मेरा मन भी कभी

यह चाहता है

मां आवाज देकर मुझको बुलाये

और मैं छुप जाऊं ...............।।


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