मैं भी ढूंढूगीं नन्हीं हथेलियों से
पलकों को बन्द करके बोली वो ।
छुपन-छुपाई खेल भाया है मन को,
दो, पांच, दस जल्दी गिनके बोली वो।
नहीं दिखता मुझे कोई यहां पर,
जाने कहां छुपा है हमजोली वो ।
कहां चले गये सब भइया आओ न,
दिखते नहीं हो पुकार के बोली वो ।
झांका उसने घुटनों के बल बैठ कर,
कभी फर्श पे लेट कर थक के बोली वो ।
बहुत ही सुंदर .... प्यारी सी पंक्तियाँ हैं....
जवाब देंहटाएंप्यारी गुडिया की प्यारी सी बात.... ढूँढने के लिए तो मेहनत करनी हो न :)
जवाब देंहटाएंछुपन-छुपाई खेल तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है...
जवाब देंहटाएंvery tender hands
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi sundar
जवाब देंहटाएंSach mera b pasandinda khel hai Chhupan Chhupayi
जवाब देंहटाएंबहुत नाजुक, बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंप्यारी परी को ढेर स प्यार ...........
जवाब देंहटाएंहम बच्चों का मन पसंद खेल है यह तो ....और इस सुन्दर कविता के तो क्या कहने
जवाब देंहटाएंनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
इस कोमल एहसास के क्या कहने
जवाब देंहटाएंसुन्दर कोमल भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता है!
जवाब देंहटाएं--
आपकी पोस्ट की चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/23.html
सुन्दर , मासूम सी रचना।
जवाब देंहटाएं----------------------------------------
जवाब देंहटाएंबाल मनोभावों का सुंदर चित्रण!
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इस कली को बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंमन को छू गये ये मासूम से भाव।
जवाब देंहटाएं“नन्हें दीपों की माला से स्वर्ण रश्मियों का विस्तार -
जवाब देंहटाएंबिना भेद के स्वर्ण रश्मियां आया बांटन ये त्यौहार !
निश्छल निर्मल पावन मन ,में भाव जगाती दीपशिखाएं ,
बिना भेद अरु राग-द्वेष के सबके मन करती उजियार !! “
हैप्पी दीवाली-सुकुमार गीतकार राकेश खण्डेलवाल