होली आई
मुझको भी
इसके प्यारे-प्यारे
रंग भा गये,
पापा मेरे लिये भी
पिचकारी लाये
भइया तो दोस्तों के साथ
सुबह ही चला गया
अब मैं किसको रंग लगाऊं
सब मुझसे बड़े-बड़े हैं
मुझे ही पहले रंग लगा देते हैं
बहुत हो गया
मैं रो पड़ती कि
पापा आ गये,
मुझसे कोई रंग नहीं लगवाता
सब मुझे ही लगाते हैं
पापा हंसते हुये
अरे देखो मैने
किसी से रंग नहीं लगवाया
पहले मुनिया मुझे रंग लगाएगी
मैं खुश होकर
अपने छोटे-छोटे हांथो से
पूरी ताकत लगा पिचकारी से
पापा की सफेद शर्ट रंगीन करने लगी
उनके मुस्कराते चेहरे पर
गुलाल मलने लगी
पापा की यह लाडली
बड़ी हो गई है फिर भी
बचपन की यह होली
आज भी
उन यादों को
ताजा कर जाती है ....।