बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

बचपन की होली ...


होली आई

मुझको भी

इसके प्‍यारे-प्‍यारे

रंग भा गये,

पापा मेरे लिये भी

पिचकारी लाये

भइया तो दोस्‍तों के साथ

सुबह ही चला गया

अब मैं किसको रंग लगाऊं

सब मुझसे बड़े-बड़े हैं

मुझे ही पहले रंग लगा देते हैं

बहुत हो गया

मैं रो पड़ती कि

पापा आ गये,

मुझसे कोई रंग नहीं लगवाता

सब मुझे ही लगाते हैं

पापा हंसते हुये

अरे देखो मैने

किसी से रंग नहीं लगवाया

पहले मुनिया मुझे रंग लगाएगी

मैं खुश होकर

अपने छोटे-छोटे हांथो से

पूरी ताकत लगा पिचकारी से

पापा की सफेद शर्ट रंगीन करने लगी

उनके मुस्‍कराते चेहरे पर

गुलाल मलने लगी

पापा की यह लाडली

बड़ी हो गई है फिर भी

बचपन की यह होली

आज भी

उन यादों को

ताजा कर जाती है ....।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

रोना पड़ता है ...













लगता है कोई जादू है

मां की गोद में

जो मेरा रोना

बंद हो जाता है

मां बेचैन होकर कहती

क्‍या हुआ

मेरी मुनिया को

सारा घर सर पे उठा रखा था

पर क्‍या करूं मैं

मां की गोदी में आकर

सब कुछ

अच्‍छा लगता है

इसलिए

कभी-कभी

इतना रोना पड़ता है ....।