गुरुवार, 17 जनवरी 2013

तुम ये तर्पण करना !!!

माँ ... मैं एक कोशिश बनी
हार के क्षणों को अपनी विजय में
परिवर्तित करने के लिए
पर तुम्‍हारे मन का संताप बन गई
....
मैं एक कोशिश बनी
पापा का मस्‍तक ऊँचा कर जाऊँ
नहीं कर सकी ऐसा
और ताउम्र की घुटन बन गई
...
मैं हर क्षण लड़ी
भइया के काँधे पर चढ़ विदा होने के लिए
रक्षा का वचन लेते - लेते
मैं उनकी आँख के कोरों का आँसू बन
मन का संत्रास बन गई
....
मैं बनना चाहती थी अपनी
अपनी बहनों के लिये आदर्श
सखियों की नज़र का अभिमान
बहुत अन्‍याय किया मैने
हर एक के साथ और हिचकी बन
उनके गले का मौन बन अवरूद्ध हो गई
जीवन पर्यन्‍त के लिए
....
तुम जब भी करो मेरी मुक्ति के लिए
शांति का पाठ  तो उन पलों में
एक दुआ करना
किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!