गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
मां का साथ ...
फलक पे सितारे अनगिनत हैं जो चांद न होता,
दुनिया में रिश्ते बहुत हैं जो मां का साथ न होता ।
जीवन का अर्थ समझने के लिये साया मां का मेरे,
साथ-साथ चलता है अकेले जाने मेरा क्या होता ।
बुधवार, 20 अप्रैल 2011
मां कैसे जान जाती हैं ....
मां के हाथों में
जादू की छड़ी जैसी
कोई चीज तो नहीं दिखती
पर वे काम सारे जादू से करती हैं
इतनी जल्दी कि
हम जब तक समझते हैं कहते हैं
और वो पूरा कर देती हैं ...
मां की आंखों पे
जादू वाला चश्मा भी नजर नहीं आता
फिर भी जाने मां को कैसे पता चल जाता है
हमने उनसे क्या छिपाया है
हम हैरान परेशान से
भाई-बहन आंखो ही आंखों में सवाल करते हैं
मां कैसे जान जाती हैं इतना कुछ
लगता है मां के पास जादू से भी बड़ा कुछ है
तभी तो वो एक चुटकी में हल कर देती हैं
सारी उलझनें
हम उलझकर रह जाते हैं मां की
इस प्यार भरी मुस्कान में
और फिर खोजने लगते हैं जादू से बड़ा क्या है
इनका प्यार ...या जादू ....
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
मां जब भी ...
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