मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

पलकों को बन्‍द करके ......


मैं भी ढूंढूगीं नन्‍हीं हथेलियों से

पलकों को बन्‍द करके बोली वो ।

छुपन-छुपाई खेल भाया है मन को,

दो, पांच, दस जल्‍दी गिनके बोली वो।

नहीं दिखता मुझे कोई यहां पर,

जाने कहां छुपा है हमजोली वो ।

कहां चले गये सब भइया आओ न,

दिखते नहीं हो पुकार के बोली वो ।

झांका उसने घुटनों के बल बैठ कर,

कभी फर्श पे लेट कर थक के बोली वो ।