स्मृतियों के आँगन में 'पापा' आज भी आप .... हर पल मेरे साथ रहते हैं ...
इस फादर्स डे पर मेरी एक प्रिय रचना ... लाडली पर
यादों की गलियों में लम्हा - लम्हा मेरा
जाता है बस आपकी आशीषों तक पापा ।
मैं बड़ी होकर भी तो नहीं बड़ी हुई कभी,
आपकी नजरों में रही हूं छोटी सदा पापा ।
मां की डांट से बचाते चुपके से समझाते,
मेरे लिये हंस के बहलाते मां को जब पापा ।
बचपन के दिन वो बचपन की बातें बताओ,
हम चाहकर भी क्यूं नहीं भुला पाते पापा ।
मैं भूली हूं न भूलूंगी कभी जिन्दगी मेरी तो,
आपके स्नेह की उंगली थाम के चली है पापा ।
मुस्कराहट आपकी निशानियां वो गुडियों की,
आज भी कैद हैं वो मेरी छोटी संदूक में पापा ।
मन मचल जाता है किसी बच्चे की तरह अब भी,
दहलीज़ पे जब कभी आकर बेटा कहते हो पापा ।
लिखी है हर याद आपके नाम बच्चों सी वो बातें,
जानती हूं पढ़कर होंगे आज भी मुस्कराते पापा ।
इस फादर्स डे पर मेरी एक प्रिय रचना ... लाडली पर
यादों की गलियों में लम्हा - लम्हा मेरा
जाता है बस आपकी आशीषों तक पापा ।
मैं बड़ी होकर भी तो नहीं बड़ी हुई कभी,
आपकी नजरों में रही हूं छोटी सदा पापा ।
मां की डांट से बचाते चुपके से समझाते,
मेरे लिये हंस के बहलाते मां को जब पापा ।
बचपन के दिन वो बचपन की बातें बताओ,
हम चाहकर भी क्यूं नहीं भुला पाते पापा ।
मैं भूली हूं न भूलूंगी कभी जिन्दगी मेरी तो,
आपके स्नेह की उंगली थाम के चली है पापा ।
मुस्कराहट आपकी निशानियां वो गुडियों की,
आज भी कैद हैं वो मेरी छोटी संदूक में पापा ।
मन मचल जाता है किसी बच्चे की तरह अब भी,
दहलीज़ पे जब कभी आकर बेटा कहते हो पापा ।
लिखी है हर याद आपके नाम बच्चों सी वो बातें,
जानती हूं पढ़कर होंगे आज भी मुस्कराते पापा ।