पापा की बातें,
करते हैं हम उंगली पकड़ के बच्चों की,
आज भी जब चलते हैं हम,
यादों की गलियों में
बारिश में भीगते हम जब
वो बालों का सुखाना पापा का
मां डांटती जब
पीठ के पीछे छिपाना पापा का
नहीं भूले हम ऐसा कोई लम्हा अभी तक
गर्मियों की रातों में
तारों की छांव में कहानियां सुनाना पापा का....