शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

मां कह दो ...


















शब्‍दों को अर्थ देने का मन करे
तो मां कह दो
जब कुछ करने में असमर्थ हो
तो मां कह दो
चोटिल हो मन से तन से
तो मां कह दो
सुकून की तलाश हो जब
तो मां कह दो
तुम्‍हें कुछ भी असंभव लगे जब
तो मां कह दो
सज़दे में हो जब भी
तो मां कह दो
रक्षा के मंत्र जब अभिमंत्रित करने हो
तो मां कह दो
सुन लेती है मन की आवाज दूर से भी
जो मां कह दो ...
रूठकर भी हंस देती है जो प्‍यार से तुम
मां कह दो ... 

'' सच मां शब्‍द कितना जादू करता है न ''

सोमवार, 14 नवंबर 2011

बच्‍चों की बात .... !!!

वह अक्‍सर कहती
बच्‍चों की बात को हमेशा
धैर्य से सुनो
वर्ना वह सहनशील
कैसे बन पाएंगे
तुम उन्‍हें
सुरक्षा देकर तो देखो
कितना विश्‍वास
उनके मन में
तुम्‍हारे लिए होगा
वो बता नहीं सकते
उनकी आलोचना मत करो
वह मन में अपने
नकारात्‍मकता पाल लेंगे,
जब भी अवसर मिले
उत्‍साह बढ़ाओ उनका वे
आत्‍मविश्‍वास से  रखेंगे
अपना हर कदम
सत्‍य और ईमान की बातों से
उनमें न्‍याय को
पहचानने का गुण उपजेगा
उन्‍हें सही और गलत का
फर्क हमें ही
समझाना होगा
हमें उपहास से बचाना होगा
उन्‍हें शर्मिन्‍दा न होना पड़े
अपने साथियों के बीच
उन्‍हें सहमति देंगे
जब तभी तो
वो दुनिया को प्‍यार से
स्‍वीकार करना सीख पाएंगे ...
हौसले से रखेंगे कदम तो
मुश्किलों से लड़ना सीख जाएंगे ...!!!

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

मां .....!!!!!!!!



















मां ..... ममता है इस मां से हमने क्‍या-क्‍या पाया है
कितने पावन शब्‍दों का साया है मां से शुरू होते शब्‍द .....

मां का मन या हो मधुरता
मोहक और मधुबन भी हो जाती  है,
मां ही मूरत मन्दिर और मुस्‍कान है
मां ... से होता मन्दिर मक्‍का और मदीना भी
मां से मस्जिद मां से मौला
मज़हब मां से ये मंत्र है मन्‍नतों का
मिश्री सी बोली मां की
मदरसे की पहली सीढ़ी मां है
मुहब्‍बत है मां की ममता
होता नहीं मां जितना कोई महान भी 
मित्र भी बनती मुबारक होता मां का होना
मां मेंहदी है मां से ही मेला है 
मां से हर रिश्‍ता है जग में
वर्ना मानुष तन ये अकेला है
मां की दुआ हो तो
हर नामुमकिन भी मुमकिन है
मां ....माध्‍यम है जग में आने का ... !!!

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

मां की तरह ....









मां हर बच्‍चे के साथ
हमेशा यूं ही साथ रहती है
बिल्‍कुल साये की तरह
किसी को दिखाई देती है
किसी के लिए
अदृश्‍य हो जाती है
किसी ने सच ही कहा है
प्रेम के लिए
अक्षरज्ञान कोई मायने नहीं रखता,
इसे तो आत्‍मा पढ़ लेती है
खामोशी से और कह देती है
वर्ना मां कैसे जान पाती
अबोध शिशु की
अकुलाहट भूख-प्‍यास
नन्‍हें का पेट दर्द और मां का ग्राइप वाटर
जिसका प्रचार हर चेहरे की
मुस्‍कान होता था ....
प्रेम मौन की भाषा खूब समझता है
जिसे मन ही मन वह गुनता है
मां की तरह ....
उसे भी कद्र होती है अहसासों की
तभी तो समर्पित हो जाता है
नि:शब्‍द प्रेम नई तलाश में
कुछ नया गुनता हुआ ...!!!

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

उसका बचपन ....











आंचल
में मेरे
छिपाता चेहरा उसका बचपन
मैं झांकती उसकी आंखों में
हंसी खिलखिलाती
चमकती उसकी आंखें
भूल जाती मैं
सारी थकान सारी मायूसी
एक हंसी मेरे होठों पर
आ के थिरकती
मां की कही बात पे
यकीन हो उठता मेरा
कहती थी वो
हर मां में यशोदा मां की
ममता छिपी होती है
हर बच्‍चे में
कान्‍हा का हठ होता है
हर थपकी मां की हथेली का
दुलार नहीं होती
निस्‍वार्थ होती मां की ममता
हर बच्‍चे के लिए
किसी एक पे इसका
अधिकार नहीं होता ... !!!

बुधवार, 7 सितंबर 2011

कोई कैसे जिए ....














मां
तुम इक दुआ हो मेरे लिए
तुझ बिना बता कोई कैसे जिए

हसरत तेरी मेरी खुशी हरदम,
फिर कोई दर्द मुझको कैसे छुए

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

गीत गाए किसी ने ...












थाप ढोलक पर पड़ी
फिर
मंगल गीत गाए किसी ने
रिमझिम फुहारों ने
दामन भिगाया है उसका
आशीषों से ..
शहनाई की धुन
करने लगी जब विदा बेटी को आंगन से
मेघो ने गर्जना की
दिल ने चुपके से आवाज की
रूदन मां का बिलखना बेटी का ..
हो कैसे कलेजा पत्‍थर
फिर बाबुल का ...

बुधवार, 6 जुलाई 2011

जाने क्‍यों ....?







जाने क्‍यों ....?

वह, आज स्‍कूल नहीं,

जाना चाहती,

पूछने पर बस,

उसका वही ठुनकना

हम स्‍कूल नहीं जाएंगे,

जाने क्‍यों ....?

क्‍या बात है

मुझे अभी सोना है

रोज-रोज जल्‍दी

जगा देती हो

उठो ब्रश कर लो

तैयार हो जाओ

जल्‍दी दूध पी लो

रिक्‍शे वाला

आता होगा

मम्‍मा तुम रोज

एक ही बात बोलती हो

जाने क्‍यों ....?

सब कुछ

एक ही सांस में

बोल गई गुड्डो

मैं हैरान सी

उसकी बड़ी-बड़ी

उनींदी आंखों में

शबनम की बूंदों से

आंसुओ को देख

विचलित हो गई

कहीं मैंने

इसका बचपन

इसके सपने

छीन तो नहीं लिए ....।।


शनिवार, 18 जून 2011

पापा की बातें ...








पापा की बातें,

करते हैं हम उंगली पकड़ के बच्‍चों की,

आज भी जब चलते हैं हम,

यादों की गलियों में

बारिश में भीगते हम जब

वो बालों का सुखाना पापा का

मां डांटती जब

पीठ के पीछे छिपाना पापा का

नहीं भूले हम ऐसा कोई लम्‍हा अभी तक

गर्मियों की रातों में

तारों की छांव में कहानियां सुनाना पापा का....

गुरुवार, 9 जून 2011

मां को कैसे ....








मां ईश्‍वर का दूसरा रूप !

तुमने सोचा है कभी

जिनके पास मां नहीं होती

उनके बारे में ....

वो मां को कैसे

महसूस करते हैं ...?

बन्‍द करके आंखों को

छवि तलाशते हैं मां की

आंसू भरी पलकों के बीच

मां उसी ओज से

मुस्‍कराती नजर आती है

मां की उंगलियों का स्‍पर्श

सिर पे एक छुअन मां की

माथे पे मां का प्‍यार

पीठ सहलाती हथेली मां की

इन सबके साथ

झिलमिलाती आंखों से

निहारना मां को

एक दर्द प्‍यार भरा

वो मां की दुआएं वो बोली प्‍यारी

बहुत याद आता है हरपल

मां का न होना पास में

आशीषों का खजाना मेरे नाम वाला

जब खो जाता है तो

रूला जाता है हर पल ...बिन मां के ...


शनिवार, 7 मई 2011

मां मुश्किल की घड़ी में .....















मां जब भी कोई पल मुझे तन्हा मिलता है
वो सिर्फ तेरी ही बात कर लिया करता है

तेरा अहसास मेरे साथ चलता है वर्ना ये
मासूम बच्चे सा हर कदम पर डरता है

तेरे साथ होने का जज्बा दिल में इस कदर है,
मन ही मन हर पल तुझे पुकार लिया करता है

तुम कभी दुआ बनती कभी जिन्दगी हो जाती,
तभी तो खुद से ज्यादा ऐतबार तुम पे करता है

मां मुश्किल की घड़ी में तेरा आंचल मेरे लिये,
सुरक्षित कर मुझे रक्षा कवच हो जाया करता है

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

मां का साथ ...
















फलक पे सितारे अनगिनत हैं जो चांद होता,
दुनिया में रिश्ते बहुत हैं जो मां का साथ होता

जीवन का अर्थ समझने के लिये साया मां का मेरे,
साथ-साथ चलता है अकेले जाने मेरा क्या होता


बुधवार, 20 अप्रैल 2011

मां कैसे जान जाती हैं ....













मां के हाथों में
जादू की छड़ी जैसी
कोई चीज तो नहीं दिखती
पर वे काम सारे जादू से करती हैं
इतनी जल्‍दी कि
हम जब तक समझते हैं कहते हैं
और वो पूरा कर देती हैं ...
मां की आंखों पे
जादू वाला चश्‍मा भी नजर नहीं आता
फिर भी जाने मां को कैसे पता चल जाता है
हमने उनसे क्‍या छिपाया है
हम हैरान परेशान से
भाई-बहन आंखो ही आंखों में सवाल करते हैं
मां कैसे जान जाती हैं इतना कुछ
लगता है मां के पास जादू से भी बड़ा कुछ है
तभी तो वो एक चुटकी में हल कर देती हैं
सारी उलझनें
हम उलझकर रह जाते हैं मां की
इस प्‍यार भरी मुस्‍कान में
और फिर खोजने लगते हैं जादू से बड़ा क्‍या है
इनका प्‍यार ...या जादू ....

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

मां जब भी ...













मां जब भी सज़दे में होती है,
उसकी आंखे नम हो जाती है

कहती है मेरे अश्को को जाने दे,
तेरी बलाएं तो कम हो जाती हैं

गुरुवार, 24 मार्च 2011

कड़ी धूप ...
















दर्द सहकर
मुस्‍कराती है
बहते हैं आंसू
जब मां के
बच्‍चों से छिपाती है
कड़ी धूप में
खुद नंगे सिर हो
तो कोई बात नहीं
दामन से अपने
लाल को ढंककर
झुलसने से बचाती है ...।।

मंगलवार, 15 मार्च 2011

नये रंग में ...!!
















मां हर बार तुम
वही रंग ले आती हो
नीला और पीला
हरा और गुलाबी
इस बार कोई
रंग नया लाओ तो
मुझको रंगना है तुमको
भी उस रंग में .....।
हर बार होली के दिन
तुम रसोई में
पकवानों की खुश्‍बू के बीच
छिप जाती हो
इस बार सारे पकवान
बनने के बाद ही
मैं रंग घोलूंगी
रंगना होगा तुम्‍हें भी
उस नये रंग में ....।
तब तुम्‍हारा कोई बहाना
काम नहीं करेगा
गुलाल का टीका
मेरे गालों पर लगाकर
सटाना तुम्‍हारा वो गाल
मुझे थोड़ी देर के लिये
रोक तो देगा
पर तुम्‍हें रंग तो खेलना होगा
बोलो खेलोगी न मां ...
मेरे साथ
उस नये रंग में ...।

मंगलवार, 8 मार्च 2011

कोख में पली हूं नौ माह मैं भी तो मां ...












रस्‍म के नाम पर, रिवाज के नाम पर जाने,

कब तक होती रहेगी यूं ही कुर्बान जिंदगी ।

पोछकर अश्‍क अपनी आंख से पूछती जब,

बेटी मां से क्‍यों दी मुझे तूने ऐसी जिंदगी ।

मेरा कोई दोष जो मुझे मिला ये कन्‍या जन्‍म,

क्‍या दर्द, और वेदना बनके रहेगी ये जिंदगी ।

तेरी कोख में पली हूं नौ माह मैं भी तो मां,

आ के धरा में करती हूं मैं तेरी भी बंदगी ।

माना की पराई हूं सदा से लोग कहते आये,

पीर मेरी समझ ली बिन कहे तुमने दी जिंदगी ।

तिरस्‍कृत हुई सहा अपमान भी मैने, नहीं छोड़ा,

फिर भी मैने ईश्‍वर इसे जो मिली मुझे जिंदगी ।

दूंगी संदेश जन-जन को मैं, करूंगी सार्थक जीवन को,

अभिशाप नहीं वरदान अब बेटी बचाओ इसकी जिंदगी ।

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मां आओ न ...














उसे जब भी
मेरे आंचल में छुपना होता
कहती मां
देखो धूप कितनी तेज है
और मेरे आंचल में
आकर छुप जाती ....
उसकी इस
शैतानी पर मैं
सिर्फ मुस्‍करा के रह जाती ...
उसे जब भी
कुछ खाना होता
बड़े प्‍यार से मेरे पास आती
मां आज तुमने
पानी भी नहीं पिया
तुम्‍हें भूख नहीं लगती
मुझे तो
बहुत जोर की भूख लगी है
थोड़ा खाने को दो न ...
हर समय
वह कोई न कोई
धमाल करती ही रहती
कभी दीदी का
दुपट्टा लेकर आ जाती
मां मुझे
भी साड़ी पहनाओ न ...
जब भी मैं
उसे पढ़ने को कहती तो
वह शुरू हो जाती
वन..थ्री ..सेवन ...टेन ..
बस अब हो गया
पैर पकड़कर शुरू हो जाती
मेरा पैर दुखता है
मां नींद आ रही है
सोने चलो न ....
इसकी शै‍तानियों के आगे
मेरी एक नहीं चलती
जब तक इसकी बात न मानो
सांस नहीं लेती
पुकारती ही रहती
मां आओ न ...मेरी प्‍यारी मां ....

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

तुम बहुत अच्‍छी हो ....








कभी मां गौरेया कहती,

कभी कहती नन्‍हीं चिडिया

कभी कहती शैतान

मां के यह प्‍यारे

सम्‍बोधन सुनकर

मैं रह जाती हैरान

मेरी पलकों के सपने

जाने कब

वह अपनी आंखों में ले लेती

और मुझे सिर्फ

हौसला देती आगे बढने का

अपने पंखों में मुझको छुपा कर

मुझे हर तूफान से बचाती

और मेरे लिये तो

बस सारी दुनिया वही हो जाती

मेरे हर सवाल का जवाब

उसके पास होता था

सिवाय इस के

जब मैं भावुक होकर कहती

तुम बहुत अच्‍छी हो

तो एक मुस्‍कान के साथ कहती

बेटा हर मां

अपने बच्‍चे के लिये

अच्‍छी होती है

और हर बच्‍चा

अपनी मां का प्‍यारा होता है ...

बुरे तो बस हालात हो जाते हैं

जिनके आगे

हम लाचार हो जाते हैं ...।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

मां सुनती है ...








मैं खामोश रहूं तो

मां सुनती है

मेरी खामोशी को

पहचानने की

कोशिश करती है

हर आहट को

लेकिन मेरे आवाज देने पर

वह खुद छुप जाती है

हंसी को दबाकर

मुस्‍कराती है

यह लुका छिपी का खेल

मेरे साथ

अक्‍सर खेलती है वह

और मैं तो

हर खेल में

मां को

जीतते हुये

देखना चाहती हूं

पर मेरा मन भी कभी

यह चाहता है

मां आवाज देकर मुझको बुलाये

और मैं छुप जाऊं ...............।।


मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मां तुम ....








मेरी आंखे नींद से

बोझिल होती हैं पर

उनमें नींद नहीं आती

बिन तुम्‍हारे

कोई गीत गुनगुनाए ।

सुबह को बिन तुम्‍हारे

जगाये जागने का

मन नहीं करता

जब तुम

प्‍यार से कहती हो

ऊं साईं राम

बेटा उठ जाओ

मेरी बंद पलकों

में तुम्‍हारी छवि

समा जाती

मां तुम

खामोश मत रहा करो

तुम्‍हारा मौन

मुझे विचलित कर देता है ।