पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी
कुछ उदासियां
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी
कुछ उदासियां
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
...
कितना कुछ बदला
पर ये मन आज भी
आपके काँधे पे
सिर टिकाये हुये हैै
आप यूँ ही रहेंगे
साथ मेरे जानती हूँ
आपका चेहरा बार-बार
सामने आ रहा है
नहीं संभाल पाती जब
तो उठाकर क़लम
शब्दों के श्रद्धासुमन
अर्पित कर देती हूूॅं
जहाँ भी हो आप
अपना आशीष देते रहना !!!