कोई बिटिया मां के आंचल में छिपी कोई मेरे कांधे चढ़ी,
मैं इनकी हंसी के बीच यूं सदा हंसता खिलखिलाता रहा ।
खबर पढ़ता कोई बुरी अखबार में या सुनता कहीं तो
मैं रह-रह के वक्त और हालात पर तिलमिलाता रहा ।
कोई मासूम जान आने से पहले धरा पर कत्ल होती,
तब-तब कोई आंसू मेरी आंख में झिलमिलाता रहा ।
निशाने पे जाने कितनी और ज़ाने होंगी अभी यहां,
बेबसी पर उनकी मेरा अन्तर्मन बिलबिलाता रहा ।
इरादों को इनके नेक नीयत बख्श दे या खुदा अब तो,
बेटियों को नेमत समझें मन में ये इल्तज़ालाता रहा ।