बुधवार, 25 जनवरी 2012

मैं निश्चिन्‍त सी यूँ ...


















बेफिक्री की चादर ओढ़ी है मैने जब से
मां फिक्र के साये में रहने लगी है
कब मैं बड़ी होऊंगी
मेरी नादानियों पे कभी-कभी
वो खफ़ा होने लगी है
ये भागती दौड़ती जिन्‍दगी जहां
खुशियों का ठौर नहीं
मेरी ख्‍वाहिशें इनमें गुम न जाएं कहीं
मां की हिदायतें मेरे लिए
समझाइशें होने लगी हैं ...
मैं निश्चिन्‍त सी यूँ
जैसे कोई बूंद बारिश की
जो बेपरवाह सी
कभी पत्‍तों पर ठहर जाएगी
या धरती के सीने में
ज़ज्‍ब हुई तो
सोंधी सी महक बन
फिज़ाओं में घुल जाएगी
नदिया में पड़ी जो
कलकल की ध्‍वनि बन
पहाड़ों का सीना
छलनी कर इक धारा बन
सागर में मिल जाएगी ...
इस चंचलता में
मेरे संग एक मुस्‍कान
ओढ़कर मुस्‍काती है मां
और भावुक होकर कहती है
तुम कुछ भी बनना
लेकिन किसी के
निगाहों की नमी मत बनना
ये नमी किसी कमी का
अहसास दिला जाती है ....

सोमवार, 2 जनवरी 2012

नन्‍हीं कली के हौसले उम्‍मीद भरे ...!!!


















हौसले उम्‍मीद भरे
पंजे के बल उछलना
पकड़ना टहनी को
ये ज़ौहर है  उनका जो
कुछ कर गुज़रना चाहते हैं
ऐसे ही एहसास हैं
मेरे आंगन में
हर खुशी को पकड़ती
चंचल हंसी से
मन को मोहती नन्‍हीं कली के  ...!!
कोशिशें जब से
दस्‍तक देना सीख गई थीं,
तभी तो वह जब तब
हारकर भी नहीं हारती थी हिम्‍मत
निराशा के क्षणों में
उसका मस्तिष्‍क विचारों की
रूपरेखा तैयार करता
समय से सीखती रोज़ कैसे
एक नया दिन आता है
समय ठहरता नहीं जब तो
वो क्‍यूं ठहरे भला ...
हारे हुए दिल को अक्‍़सर वह
यही मंत्र दिया करती थी
जाप करने के लिए
विजेता बनने का हथियार है
कर्म से विमुख मत बनो
अवश्‍य विजयी होगे  ...
निश्‍चय पर अडिग हुए हो तो ...!!!