बहुत प्रिय थी
बचपन से
माथे पे छोटी सी
बिंदी
उतना ही पंसद था
नदी में तैरना
जितनी बार मौका
मिलता
झट से तैरने चल
देती
और बिंदी बह जाती
J
तब आज की तरह
नहीं होती थी
विभिन्नता
मेरी बिंदी प्रेम
को देख
माँ ले आई थी
कुमकुम की शीशी
जितनी बार चाहो
लगा लो
छोटी सी बिंदी
और माथे से ज्यादा
चमक उठती थीं
आँखे J