गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

खुद रो पड़ती ...


मैं चलती

जब भी लड़खड़ा के

मां को जाने

क्‍यों लगता हैं

मैं गिर जाऊंगी

सच में

अंकल

मैं गिर भी जाती

जब

वो खुद दौड़ पड़ती

अपने गिरने की

परवाह किये बगैर

तब नानी कहती

अरे संभल के

गिर मत

जाना बेटा

पर मां को तो लगता

कहीं मैं रो ना दूं

और मैं मां को दौड़ते देख

चुपचाप एकदम

खामोश रह जाती

तब वह

खुद रो पड़ती

बेटा कहीं लगी तो नहीं

पूछती जाती

और उसके

आंसू बहते जाते .....।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

बेटी हैं ...


लड़की हूं मैं,

मेरे सपनों का शीश महल, कभी उसका कोई शीशा टूटता तो कभी कोई चकनाचूर हो जाता, पर मैं किसी से शिकायत नहीं कर सकती थी, भाई पढ़ने जाते तो मैं खुशी-खुशी उनका हर काम करती, आते तो उनके लिये खाना लगाती, देर हो जाती तो वह मेरी चोटी खींच लेते, खुद अपना सामान इधर-उधर फैलाते, और जब नहीं मिलता तो मुझे डांट लगाते, क्‍या मेरा लड़की होना अपराध है ? सोचती हूं मैं भी पढ़ने जाऊं पर बापू ने मेरा नाम नहीं लिखाया, दादी कहती इसे तो घर का कामकाज सिखाओ, दूसरे घर जाना जाना है, यह दूसरे घर बेटियां क्‍यों जाती हैं ? उन्‍हें दूसरे घर जाना होता है क्‍या इसलिये उन्‍हें पढ़ाया नहीं जाता या फिर वह पढ़ने जायेंगी तो घर का काम कौन करेगा, मुन्‍ना को कौन खिलाएगा ?

मां के साथ

हर काम में उनका

हांथ बटाती

छोटे भाई को

अपनी गोद में उठाये-उठाये

कभी मेरी कमर

दर्द से दुहरी हो जाती

पर वह रोये न इसलिये

मैं उसे नीचे नहीं उतारती

वह रोएगा

तो सब मुझको डांटेंगे

मैं लड़की हूं न

सोचती भी हूं,

समझती भी हूं

किससे कहूं

जो अपने गांव में डाक्‍टर हैं

वह भी तो लड़की हैं किसी की

जो पढ़ाती हैं स्‍कूल में

वह भी तो बेटी हैं किसी की

उनके मां-बापू कितने अच्‍छे हैं

जो उन्‍होंने उन्‍हें पढ़ाया ।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

नन्‍हीं परी का घोड़ा ...


कभी पैरों में मेरे

अपने नन्‍हें पांव

रखकर

मेरे हांथ पकड़ती

फिर झूलने की मुद्रा में

लटक जाती

उसे अपने पैरों पे खड़े कर

झुलाते हुऐ देखता

उसका भोला चेहरा

उसकी मासूम मुस्‍कान

से ज्‍यादा चमकती

उसकी आंखे

कभी लटक जाती

गले में

अपनी नन्‍हीं बाहें डालकर

जो मुश्किल से

पहुंचती थी मुझ तक

मैं हंसते हुये

संभालता जब

तो कहती

पापा घोड़ा बन जाओ न

मैं धरती पे टेककर घुटने अपने

बन जाता

नन्‍हीं परी का घोड़ा ।

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

अक्षर हैं मुझको गढ़ने ...


जाने दो मां

मुझको भी पढ़ने,

जाने कितने

अक्षर हैं मुझको गढ़ने,

पढ़ना लिखना

बहुत जरूरी है

नहीं तो

करना पड़ता

सिर्फ मजूरी है

तुम भी पढ़ पाती

तो पूरी मजूरी

मिलती तुम्‍हे

मैं घर का सारा

काम करूंगी

पढ़कर भी

तुम्‍हारा ही

नाम करूंगी

वक्‍त अपना बिल्‍कुल

न बर्बाद करूंगी

मां मुझको भी दिला दो

एक किताब

जिसमें लिखा हो

सारा हिसाब

क्‍या खोया क्‍या पाया

या

सारा जीवन यूं ही गंवाया !

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

मां का दुपट्टा ....


वो अपने

छोटे-छोटे हांथों से

मां का दुपट्टा

सर पे डाल कर

कभी दुल्‍हन बन

बन जाती

झांक कर कभी शर्माती

उसके इस खेल में

शामिल होता हर कोई

चेहरे पर मुस्‍कान

सजाये वह दौड़ कर

गोद में छुप जाती ....

वो अपने ....।





लाडली इस इन्‍तजार में है कि आप भी उसके लिये

दो शब्‍द लिखेंगे, अगर लिख चुके हैं

तो भेजने में देर क्‍यों ?

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

मां की उलझन ....

मां को कुछ उलझन है,

मेरे आने से

पर वह कहती नहीं जमाने से

कभी-कभी भर लाती

आंखों में आंसू

कहती मुझसे मन ही मन

यह सच है

तू मेरा अंश है

पर बेटी

यह सब कहते

तुझसे चलेगा नहीं

मेरा वंश

तेरा अंत करना चाहते हैं

जन्‍म के पहले

मिटा कर

तुझे नहीं

खत्‍म करना चाहते हैं

खुद मेरा वजूद

बता मैं कैसे

सहयोग करूं

इनका नन्‍हीं बता न

आज मैं भी शपथ लेती हूं

तुझे जन्‍म दूंगी

या अपने आपको

मिटा दूंगी

मैं सोचती

मां की यह उलझन

खत्‍म हो पाएगी कब

मैं खत्‍म हो जाऊंगी

या

मां नहीं रहेगी तब

दुनिया ये कब समझ पाएगी .....!!



आपने अपनी लाडली के लिये कुछ लिखा हो तो भेजे यहां

ladlisada@gmail.com

सोमवार, 7 सितंबर 2009

बेटी मन का गहना हो ...

ऐसे मन को तुम संबल देना पूरे मन से,

जिसके आंगन में बेटी मन का गहना हो ।

रीत निभाते जीवन की करके कन्‍यादान कैसे,

पूछो उस बाबुल से जिसके मन को सहना हो ।

आंखों में आंसू होते चेहरे पर संतोष की छाया,

जब विदाई के पल में इन अश्‍कों का बहना हो ।

नाजों पली वो नन्हीं कली मेरे आंगन में अब तक,

थी खुशियां बहुत इसके होने से जब कुछ कहना हो ।

अपनी जाई को सारा जीवन कहा है, पराई है बेटी तू,

दुखी मन होवे तो होवे, नहीं ये किसी से कहना हो ।

बुधवार, 2 सितंबर 2009

गिर जाती कभी . . . .


बाहों के झूले में चुप हो जाती

सपनों की दुनिया में खो जाती

कभी मुस्‍काती सोते-सोते जब,

मां तो बस तुझमें खो जाती ।

खिलौने हांथ में लेकर वह मुझे,

नन्‍हें कदमों से कभी देने आती ।

पैर धरती पर रखती तो लगता,

उड़ रही हो देख मुझे भाग आती ।

गिर जाती कभी घुटनों के बल वह,

आकर मुस्‍कान से छुपाने लग जाती ।

नयनों से उसके ओझल होती मैं जब,

वह ढूंढती चारों ओर मां कहती जाती ।


आपने भी कुछ लिखा हो लाडली के लिये तो भेजें यहां

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कविता .......कोई लोरी ममता भरी

पाकर तुझको खुश है

आज मां इतनी

गुनगुना रही

कोई लोरी ममता भरी


चांदनी भी

चांद तारों के संग

जगमगा के

बिखेरती रौशनी मद्धम सी

आ जाए निंदिया

नींद से बोझिल नयनों में

झूला तेरा झुलाती पवन

आती जाती

तेरे चेहरे पे आती जब

मुस्‍कान

उसको सारी दुनिया की

खुशियां मिल जाती ।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

बच गई मेरी लाडो बुरी नजर से ...

तेरी नन्‍हीं आंखों के सपने,

मेरी आंखों में बसते हैं,

है मेरी हर दुआ तेरे लिए

मुस्‍कान तेरी,

आंसू मेरे

रोज जाने कितने

जतन करती हर जगह

तेरी खुशियां ढूंढती हूं

सजाती हूं ख्‍वाब

आंखों ही आंखो

हर आने वाले पल में

तू जब

खुश होकर हंसने लगती

नजर तुझको

लग न जाये मेरी ही

बचाने को

काजल का टीका तुझे लगा देती

फिर तुझे बेफिक्र होकर मैं हंसने देती

बच गई मेरी लाडो बुरी नजर से

सोमवार, 10 अगस्त 2009

नन्ही मुस्कुराहट


तारो की पोटली,

खुलकर गिरी कही..

जब मिली तो एक तारा कम था,

मद्धम रोशनी में,

ज़मीन पर देखा

तो एक नन्ही मुस्कुराहट

उंगली थाम के चली

आई आँगन में..

खिलखिलाती रहती है

अब गालो पे हमारे..

और मुड़ कर देखती है पीछे...

जब भी प्यार से

कोई कहता है... लवी...


हमारी बिटिया लविज़ा के लिए हमारे अज़ीज़ दोस्त कुश ने

एक नज़्म लिखी थी. जिसके प्रस्‍तुतकर्ता हैं सैय्यद अकबर

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

यह है बेटियों का ब्‍लाग लाडली -

यह है बेटियों का ब्‍लाग लाडली -

मन को छू लेते हैं अक्‍सर वो पल, जब कोई नन्‍हीं कली आपके जीवन, में लाती है खुशियां अनगिनत आप साझा करें उन पलों को अपनी रचना के किसी भी रूप में चाहे वह कविता, हो या कहानी, गजल हो या छंद बस आप उसे यूनिकोड में एक ई-मेल करें इस पते पर -
E-mail : ladlisada@gmail.com,
http://ladli-sada.blogspot.com/

सोमवार, 3 अगस्त 2009

मन को छू लेते हैं अक्‍सर वो पल
जब लाडली बेटी आपके आंगन का
हर कोना महका देती है,
अपनी मुस्‍कान से,
आइये साझा करें उन खुशियों को .... ।