मंगलवार, 26 मार्च 2013

माँ का साया .... (4)


उसका बातूनी होना . अच्‍छा लगता है, लेकिन वो सबसे बात नहीं कर पाती, घुलने-मिलने में भी सबसे बहुत वक्‍त लेती है, वो और उसकी चुप्‍पी .... दोनो मन ही मन जाने कितना कुछ साझा कर लेती थीं अपने आप से... जब भी  देखा है चुप रहते हुए तो सोच में पड़ जाती हूँ कई बार ये वही है जो इतनी बातें करती है जिसे चुप होने के लिये कहना पडता है उसकी माँ को ... कई बार उसका रूठ जाना, चुप रहना दर्शाते उसकी नाराजगी को, उसकी शिकायतों की पोटली हमेशा उसके काँधे पर ही रहती थी मौका मिला नहीं कि शुरू हो जाती, तुम तो मुझसे प्‍यार नहीं करती, भैया और दीदी ही तुम्‍हें भाते हैं मुझे तो डाँट देती हो ...माँ असमंजस में पड़ जाती कई बार उसे समझाने के फेर में, पर शायद यह हर बाल मन की व्‍यथा रहती है ... वो लिखती है मुझे हर दिशा में माँ के होने का अहसास होता है, साये में उनके मेरा हर कदम उत्‍साह के साथ धरा पर पड़ता है ऐसा आभास भी हुआ है कई बार जैसे ऊपर ही ऊपर मैं उड़ रही हूँ ... ये एहसास एक झरोखे से मन में झाँकते रहते हैं हरदम और मैं घुमती रहती हूँ बस फिरकनी की तरह ... चारों ओर
वो कई बार सपने में देखती खुद को माँ से दूर जाते हुये तो चिल्‍ला उठती भय से ... तब माँ ही उसे सम्‍हालती थपकियाँ देती और कई बार गुनगुनाती कोई लोरी ... पता नहीं किसमें जादू था माँ की आवाज में या फिर उन शब्‍दों में जो माँ की वाणी का ओज पा मुझे सपनों के गांव ले जाते ... माँ वहाँ भी साथ होती परी के रूप में ... हाँ उन्‍हें परी कथा सुनाना बहुत भाता है, या फिर काबुली वाला जिनके किस्‍से सुनाते हुये माँ की आँखों में एक चमक होती थी और उसके चेहरे पर माँ के पास होने की मुस्‍कान ...
आगे वो करती है ... अपनी पहली होली का जिक्र कोई भी त्‍योहार होता माँ की जिम्‍मेदारियाँ और काम हजार गुना बढ़ जाते सबकी फरमाईशों को पूरा करने में खुद से लापरवाह हो ... तन-मन से पूर्णत: समर्पित हर चेहरे पर मुस्‍कान और मन में खुशी देने में लग जातीं, मेरे छोटे हाँथों से हर बड़ा बचकर निकल जाता, और उलटे मेरे ही गालों पर गुलाल मलते हुये रंग लगाते हुये भाग जाते मैं किसी को रंग लगा ही नहीं पा रही थी, मेरा हम उम्र कोई था भी नहीं आस-पास मैं लगभग रोते हुए माँ के पास पहुँची और बोली ... आप तो काम करती रहती हैं हर वक्‍त मेरे साथ कोई भी होली नहीं खेल रहा सब मुझे ही रंग कर चले गये मुझे भी खेलना है किसके साथ खेलूँ बताओ न ...
बस पांच मिनट दो ... मैं बताती हूँ तुम्‍हें किसके साथ रंग खेलना है ....घड़ी देखना तो आता नहीं था माँ ने कहा तो इतना ही वक्‍त बीता होगा ... वो आईं  और उनके हाँथों में गुलाल की प्‍लेट थी, जिसमें हर रंग था ...  मुझे भगवान कृष्‍ण की मूर्ति के पास ले जाकर बोलीं ... पहला रंग तुम इन्‍हें लगाओ ... क्‍यूँकि होली खेलना इन्‍हें भी खूब भाता है ... और फिर एक चुटकी अबीर कान्‍हा को लगवाने के बाद वो मेरे सामने पालथी मार बैठ गईं ... चलो हम तुम होली खेलते हैं ... और मेरे गाल से अपना गाल सटा हर रंग में मेरे साथ वो खेलती रहीं ....इन शब्‍दों को पढ़ लगा उसकी माँ कितनी प्‍यारी है ... सबकी माँ ऐसे ही होती होगी ... :)
फिर मिलेंगे ... किसी नये रंग के साथ आज तो आपको भी रंग खेलना होगा .... किसी अपने के संग ... तो शुभकामनाएँ रंग-रंगीले त्‍योहार की .... 



सोमवार, 18 मार्च 2013

माँ का साया .... (3)















ख्‍यालों की नदी में ...हैरानियों का गोता कितना अपना सा लगता है ... जैसे ये शब्‍द जहाँ दिल की गहराईयों से वह कहती है जब - माँ तो अल्‍लाह की इक रज़ा है जिंदगी बिन उसके तो बस कज़ा है, आँख नम हो आई इन पंक्तियों को पढ़ते हुये उसके मन का यह कोना कभी - कभी बिल्‍कुल अपना सा लगता है और उसकी माँ बिल्‍कुल अपनी सी लगने लगती है, जिसे वह पृष्‍ठ दर पृष्‍ठ मुझे सौंपती जा रही थी और सच कहूँ तो मेरा जी बिल्‍कुल नहीं चाह रहा था इसे छोड़ने का लग रहा था ये पानी का गिलास होता तो एक साँस में ही अपने भीतर उड़ेल लेती पर ... ये उसकी भावनाएँ थीं जिन्‍हें मैं जीना चाहती थी बिल्‍कुल उसकी तरह जैसे उसने इन्‍हें शब्‍द-शब्‍द नम आँखों से सींचा था कभी वो इनके साथ मुस्‍कराई थी तो कर बैठती थी शिकायतें ... आप सोच रहे होंगे शिकायतें जी हाँ शिकायतों की पूरी पोटली तैयार थी अगले पन्‍नों पर गुब्‍बारे से मुँह और अपलक निहारती सी ये माँ को जब अपनी पोटली खोलने लगी तो मैं अवाक् रह गई और इसे पढ़ते ही मैं बिन मुस्‍कराये नहीं रह सकी, जब इसकी पहली शिकायत इसकी पोटली से निकली ... हर वक्‍त बस काम करती रहती हैं आप, ये भी नहीं सोचतीं कोई आपके बिन कैसे रहेगा ... तो माँ ने व्‍यस्‍तता के बीच कहा अरे तुम्‍हारे सामने ही तो हूँ ...तुम्‍हारे सारे काम कर दिये खाने को दे दिया तुम्‍हें तैयार कर दिया अब क्‍या बाकी रहा, अब तो मैं अपना काम कर ही सकती हूँ न ... मुझसे बात कौन करेगा ...ओह कितनी चिंतित है यह मुझे विस्मित कर गई उसकी यह बात .... कुछ विस्‍मय के पल आगे भी हैं, तो फिर मिलते हैं उन पलों के साथ जल्‍दी ही ...

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

माँ के साये में .... (2)


















माँ के साये में  ... वो बेखौफ़ हो उठ जाती सूरज की किरणों का अभिनन्‍दन करने को जो ख्‍याल बन हर लम्‍हा उसके साथ चलती थीं, कभी माँ को नींद में ही पुकारती माँ भी नींद में बुदबुदाती आवाज़ में कहती .. बेचैन आत्‍मा चैन से सोने भी नहीं देती, लम्‍हा - लम्‍हा सरकता और वो ख्‍यालों की उँगली थाम परिक्रमा करने लगती माँ की, इसी क्रम में जाने कब सुबह से शाम हो जाती और फिर जब नींद से आँखे बोझिल होती तो आवाज देती माँ को और उधर से आवाज आती सो जाओ, बस फिर क्‍या था पलकें मुँदने लगती, यह उसके जीवन का रोज का घटनाक्रम था ... इन बातों से उसे कभी लगता ही नहीं थी कि वह अकेली है जब भी मन किया एक दस्‍तक़  ... कभी-कभी तो माँ पलट कर उसकी बात का जवाब भी नहीं देती थी पर वो मन ही मन जाने कितना कुछ कह डालती ... कुछ भी अनकहा नहीं रहने देती ... मैं हैरान हूँ उसकी डायरी का यह पन्‍ना पढ़ते हुए ... आपको कैसा लग रहा है कि ये कोई लड़की है या फिर कोई पागल जिसे सनक सी हो आई है माँ के ख्‍यालों की जो  डूबती उतरती रहती है ख्‍यालों की नदी में ... अगले पन्‍ने पर मैं चलूं उसके साथ कुछ और हैरानियों का गोता मारने ... तब तक आप मुझे अपने विचारों से अवगत कराइये...

बुधवार, 13 मार्च 2013

माँ के साये में .... (1)














मुझे एक बच्‍ची की डायरी मिली,जिसे पढ़ते हुये मैने पाया जिसका शब्‍द-शब्‍द अभिषेक करता रहा माँ की ममता का, कभी वो एक सपना देखती नवजात शिशु का जो सफेद कपड़े में लिपटा माँ के बगल में लेटा है और बंद नन्‍हीं मुट्ठियों के बीच उसने माँ का आँचल पकड़ रखा है इस भय से कि माँ उसे छोड़कर चल न दे, जिस दिन उसे ये सपना आया वो खुशी से रो पड़ी, माँ कितना प्‍यार करती है उससे, उसे यूँ माँ की ममता मिली और इसतरह वो उस रात की कर्जदार हो गई, उसने इस सपने को जिस दिन देखा तो उसने उगते सूरज से कहा ... सूरज दादा आज तुम जल्‍दी क्‍यूँ आ गये माँ चली गई न, उसकी मासूमियत पे किरणें मुस्‍कराते हुये कहने लगीं चलो हम तुम्‍हारी माँ का ख्‍याल बन जाते हैं और हर पल तुम्‍हारे साथ रहेंगे, माँ के साये की तरह ...
इस सफ़र के अगले पन्‍ने पर हम जल्‍दी ही चलेंगे
तब तक बच्‍ची को माँ के साये में रहने देते हैं