सोमवार, 22 अगस्त 2016

शब्‍दों के श्रद्धासुमन !!!!!!



पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह 
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी 
कुछ उदासियां 
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
...
कितना कुछ बदला
पर ये मन आज भी
आपके काँधे पे
सिर टिकाये हुये हैै
आप यूँ ही रहेंगे
साथ मेरे जानती हूँ
आपका चेहरा बार-बार
सामने आ रहा है
नहीं संभाल पाती जब
तो उठाकर क़लम
शब्‍दों के श्रद्धासुमन
अर्पित कर देती हूूॅं
जहाँ भी हो आप
अपना आशीष देते रहना !!!

रविवार, 24 अप्रैल 2016

माँ ... बचपन और बिंदी ...

बहुत प्रिय थी
बचपन से
माथे पे छोटी सी बिंदी
उतना ही पंसद था
नदी में तैरना
जितनी बार मौका मिलता
झट से तैरने चल देती
और बिंदी बह जाती J
तब आज की तरह
नहीं होती थी विभिन्‍नता
मेरी बिंदी प्रेम को देख
माँ ले आई थी
कुमकुम की शीशी
जितनी बार चाहो लगा लो
छोटी सी बिंदी
और माथे से ज्‍यादा
चमक उठती थीं आँखे J