खट्टी-मीठी पारले की गोली का
स्वाद याद है न ?
ये जिन्दगी भी बिल्कुल उसके जैसे है
कहीं ज्यादा खट्टी तो कहीं
हल्की सी एक मिठास लिये
जब कोई छोटा बच्चा
उस गोली को खाता है तो
माँ उसे मुँह के अंदर नहीं डालने देती
कहीं उसके गले में अटक न जाये
भले ही उसकी वजह से
माँ की साड़ी और बच्चे के हाथ चिपचिपे हो जायें
कितनी एहतियात बरतती है न माँ :)
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कई बार ऐसा भी हुआ है कि
खाते वक़्त ये
ज़बान और तालू का साथ छोड़
उतर गई गट् से गले के नीचे
लगता कुछ अटक गया पल भर को
फिर देर तक गोली का स्वाद
ज़बान पर बना रहता है
पर गले में उसकी अटकन के साथ
हम हैरान रह जाते हैं !!
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फिर काफ़ी देर तक हम
दूसरी टाफी का स्वाद लेना पसंद नहीं करते
लेते भी है तो जबान और तालू का
संतुलन बनाकर
जिंदगी भी
कुछ ऐसे ही संतुलन की उम्मीद
रखती है हमसे !!!
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