मां को कुछ उलझन है,
मेरे आने से
पर वह कहती नहीं जमाने से
कभी-कभी भर लाती
आंखों में आंसू
कहती मुझसे मन ही मन
यह सच है
तू मेरा अंश है
पर बेटी
यह सब कहते
तुझसे चलेगा नहीं
मेरा वंश
तेरा अंत करना चाहते हैं
जन्म के पहले
मिटा कर
तुझे नहीं
खत्म करना चाहते हैं
खुद मेरा वजूद
बता मैं कैसे
सहयोग करूं
इनका नन्हीं बता न
आज मैं भी शपथ लेती हूं
तुझे जन्म दूंगी
या अपने आपको
मिटा दूंगी
मैं सोचती
मां की यह उलझन
खत्म हो पाएगी कब
मैं खत्म हो जाऊंगी
या
मां नहीं रहेगी तब
दुनिया ये कब समझ पाएगी .....!!
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