![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhD55PbLzLyvAToznq8O3uswrC7stzrKuIc8yGPDjlJVE0IlrmZfhNp3l_HQT4J_JVPopAzONYGYpqpRIQvbIv3lSRl7KHWfmcKZuQHvKwWEOD6eo0_CfruLLkk20Lrnx1qUo-8sazv7os9/s320/images.jpg)
मन ही मन मैं,
तेरा नाप लेकर,
बनाती रही तेरे,
तन के कपड़े
नहीं ये छोटा होगा,
नहीं ये होगा बड़ा,
करती खुद से जाने
कितने झगड़े
तन के कपड़े . . . ।
तू गोरी होगी,
या सांवरी
मैं भी बावरी बन
सजाती रही गुडि़या पे
तेरे वो कपड़े
तन के कपड़े . . . ।
झलक तेरी आंखों में
लेकर सोती तो,
ख्वाबों में फिरती
तुझको पकड़े-पकड़े
तन के कपड़े . . . ।
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूंगी
तू आ जाएगी तो
मिट जाएंगे सारे झगड़े
तन के कपड़े . . .।