शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

मां .....!!!!!!!!



















मां ..... ममता है इस मां से हमने क्‍या-क्‍या पाया है
कितने पावन शब्‍दों का साया है मां से शुरू होते शब्‍द .....

मां का मन या हो मधुरता
मोहक और मधुबन भी हो जाती  है,
मां ही मूरत मन्दिर और मुस्‍कान है
मां ... से होता मन्दिर मक्‍का और मदीना भी
मां से मस्जिद मां से मौला
मज़हब मां से ये मंत्र है मन्‍नतों का
मिश्री सी बोली मां की
मदरसे की पहली सीढ़ी मां है
मुहब्‍बत है मां की ममता
होता नहीं मां जितना कोई महान भी 
मित्र भी बनती मुबारक होता मां का होना
मां मेंहदी है मां से ही मेला है 
मां से हर रिश्‍ता है जग में
वर्ना मानुष तन ये अकेला है
मां की दुआ हो तो
हर नामुमकिन भी मुमकिन है
मां ....माध्‍यम है जग में आने का ... !!!

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

मां की तरह ....









मां हर बच्‍चे के साथ
हमेशा यूं ही साथ रहती है
बिल्‍कुल साये की तरह
किसी को दिखाई देती है
किसी के लिए
अदृश्‍य हो जाती है
किसी ने सच ही कहा है
प्रेम के लिए
अक्षरज्ञान कोई मायने नहीं रखता,
इसे तो आत्‍मा पढ़ लेती है
खामोशी से और कह देती है
वर्ना मां कैसे जान पाती
अबोध शिशु की
अकुलाहट भूख-प्‍यास
नन्‍हें का पेट दर्द और मां का ग्राइप वाटर
जिसका प्रचार हर चेहरे की
मुस्‍कान होता था ....
प्रेम मौन की भाषा खूब समझता है
जिसे मन ही मन वह गुनता है
मां की तरह ....
उसे भी कद्र होती है अहसासों की
तभी तो समर्पित हो जाता है
नि:शब्‍द प्रेम नई तलाश में
कुछ नया गुनता हुआ ...!!!