शुक्रवार, 29 जून 2012

जब भी कभी जिन्‍दगी हंसती है ...

बड़ा नज़दीक का रिश्‍ता है
जिन्‍दगी से जिन्‍दगी का
इसके बिना
जिन्‍दगी के अर्थ
समझ ही नहीं आते
व्‍यर्थ लगता है
सबकुछ
...
जिन्‍दगी की आंखों में
आंखे डालकर  जब भी कभी
जिन्‍दगी हंसती है  सपने सजाती है
अपनी उंगलियों से उसका
सर सहलाती है 
समझती है उसके
मौन संवाद को
पढ़ती है उसकी आंखो में प्‍यार को
बेखौफ़ होकर सौंप देती है खुद को वो
उसकी हथेलियों में
फिर चाहे वो कितना भी उछाले
हवा में उसको
उसके चेहरे पर मुस्‍कान होती है
आंखों में झांकता है विश्‍वास
वो उसे संभाल लेगी
...