सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

नन्‍हीं परी का घोड़ा ...


कभी पैरों में मेरे

अपने नन्‍हें पांव

रखकर

मेरे हांथ पकड़ती

फिर झूलने की मुद्रा में

लटक जाती

उसे अपने पैरों पे खड़े कर

झुलाते हुऐ देखता

उसका भोला चेहरा

उसकी मासूम मुस्‍कान

से ज्‍यादा चमकती

उसकी आंखे

कभी लटक जाती

गले में

अपनी नन्‍हीं बाहें डालकर

जो मुश्किल से

पहुंचती थी मुझ तक

मैं हंसते हुये

संभालता जब

तो कहती

पापा घोड़ा बन जाओ न

मैं धरती पे टेककर घुटने अपने

बन जाता

नन्‍हीं परी का घोड़ा ।

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

अक्षर हैं मुझको गढ़ने ...


जाने दो मां

मुझको भी पढ़ने,

जाने कितने

अक्षर हैं मुझको गढ़ने,

पढ़ना लिखना

बहुत जरूरी है

नहीं तो

करना पड़ता

सिर्फ मजूरी है

तुम भी पढ़ पाती

तो पूरी मजूरी

मिलती तुम्‍हे

मैं घर का सारा

काम करूंगी

पढ़कर भी

तुम्‍हारा ही

नाम करूंगी

वक्‍त अपना बिल्‍कुल

न बर्बाद करूंगी

मां मुझको भी दिला दो

एक किताब

जिसमें लिखा हो

सारा हिसाब

क्‍या खोया क्‍या पाया

या

सारा जीवन यूं ही गंवाया !

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

मां का दुपट्टा ....


वो अपने

छोटे-छोटे हांथों से

मां का दुपट्टा

सर पे डाल कर

कभी दुल्‍हन बन

बन जाती

झांक कर कभी शर्माती

उसके इस खेल में

शामिल होता हर कोई

चेहरे पर मुस्‍कान

सजाये वह दौड़ कर

गोद में छुप जाती ....

वो अपने ....।





लाडली इस इन्‍तजार में है कि आप भी उसके लिये

दो शब्‍द लिखेंगे, अगर लिख चुके हैं

तो भेजने में देर क्‍यों ?