कभी पैरों में मेरे
अपने नन्हें पांव
रखकर
मेरे हांथ पकड़ती
फिर झूलने की मुद्रा में
लटक जाती
उसे अपने पैरों पे खड़े कर
झुलाते हुऐ देखता
उसका भोला चेहरा
उसकी मासूम मुस्कान
से ज्यादा चमकती
उसकी आंखे
कभी लटक जाती
गले में
अपनी नन्हीं बाहें डालकर
जो मुश्किल से
पहुंचती थी मुझ तक
मैं हंसते हुये
संभालता जब
तो कहती
पापा घोड़ा बन जाओ न
मैं धरती पे टेककर घुटने अपने
बन जाता
नन्हीं परी का घोड़ा ।