मंगलवार, 8 मई 2018
रविवार, 21 मई 2017
सोमवार, 22 अगस्त 2016
शब्दों के श्रद्धासुमन !!!!!!
पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी
कुछ उदासियां
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी
कुछ उदासियां
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
...
कितना कुछ बदला
पर ये मन आज भी
आपके काँधे पे
सिर टिकाये हुये हैै
आप यूँ ही रहेंगे
साथ मेरे जानती हूँ
आपका चेहरा बार-बार
सामने आ रहा है
नहीं संभाल पाती जब
तो उठाकर क़लम
शब्दों के श्रद्धासुमन
अर्पित कर देती हूूॅं
जहाँ भी हो आप
अपना आशीष देते रहना !!!
रविवार, 24 अप्रैल 2016
माँ ... बचपन और बिंदी ...
बहुत प्रिय थी
बचपन से
माथे पे छोटी सी
बिंदी
उतना ही पंसद था
नदी में तैरना
जितनी बार मौका
मिलता
झट से तैरने चल
देती
और बिंदी बह जाती
J
तब आज की तरह
नहीं होती थी
विभिन्नता
मेरी बिंदी प्रेम
को देख
माँ ले आई थी
कुमकुम की शीशी
जितनी बार चाहो
लगा लो
छोटी सी बिंदी
और माथे से ज्यादा
चमक उठती थीं
आँखे J
गुरुवार, 28 नवंबर 2013
कितनी एहतियात बरतती है न माँ :)
खट्टी-मीठी पारले की गोली का
स्वाद याद है न ?
ये जिन्दगी भी बिल्कुल उसके जैसे है
कहीं ज्यादा खट्टी तो कहीं
हल्की सी एक मिठास लिये
जब कोई छोटा बच्चा
उस गोली को खाता है तो
माँ उसे मुँह के अंदर नहीं डालने देती
कहीं उसके गले में अटक न जाये
भले ही उसकी वजह से
माँ की साड़ी और बच्चे के हाथ चिपचिपे हो जायें
कितनी एहतियात बरतती है न माँ :)
...
कई बार ऐसा भी हुआ है कि
खाते वक़्त ये
ज़बान और तालू का साथ छोड़
उतर गई गट् से गले के नीचे
लगता कुछ अटक गया पल भर को
फिर देर तक गोली का स्वाद
ज़बान पर बना रहता है
पर गले में उसकी अटकन के साथ
हम हैरान रह जाते हैं !!
...
फिर काफ़ी देर तक हम
दूसरी टाफी का स्वाद लेना पसंद नहीं करते
लेते भी है तो जबान और तालू का
संतुलन बनाकर
जिंदगी भी
कुछ ऐसे ही संतुलन की उम्मीद
रखती है हमसे !!!
....
सदस्यता लें
संदेश (Atom)