
दर्द सहकर
मुस्कराती है
बहते हैं आंसू
जब मां के
बच्चों से छिपाती है
कड़ी धूप में
खुद नंगे सिर हो
तो कोई बात नहीं
दामन से अपने
लाल को ढंककर
झुलसने से बचाती है ...।।
रस्म के नाम पर, रिवाज के नाम पर जाने,
कब तक होती रहेगी यूं ही कुर्बान जिंदगी ।
पोछकर अश्क अपनी आंख से पूछती जब,
बेटी मां से क्यों दी मुझे तूने ऐसी जिंदगी ।
मेरा कोई दोष जो मुझे मिला ये कन्या जन्म,
क्या दर्द, और वेदना बनके रहेगी ये जिंदगी ।
तेरी कोख में पली हूं नौ माह मैं भी तो मां,
आ के धरा में करती हूं मैं तेरी भी बंदगी ।
माना की पराई हूं ‘सदा’ से लोग कहते आये,
पीर मेरी समझ ली बिन कहे तुमने दी जिंदगी ।
तिरस्कृत हुई सहा अपमान भी मैने, नहीं छोड़ा,
फिर भी मैने ईश्वर इसे जो मिली मुझे जिंदगी ।