सोमवार, 10 अगस्त 2009

नन्ही मुस्कुराहट


तारो की पोटली,

खुलकर गिरी कही..

जब मिली तो एक तारा कम था,

मद्धम रोशनी में,

ज़मीन पर देखा

तो एक नन्ही मुस्कुराहट

उंगली थाम के चली

आई आँगन में..

खिलखिलाती रहती है

अब गालो पे हमारे..

और मुड़ कर देखती है पीछे...

जब भी प्यार से

कोई कहता है... लवी...


हमारी बिटिया लविज़ा के लिए हमारे अज़ीज़ दोस्त कुश ने

एक नज़्म लिखी थी. जिसके प्रस्‍तुतकर्ता हैं सैय्यद अकबर

12 टिप्‍पणियां:

  1. फिर से कहते है.. बहुत सुन्दर..

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  2. शानदार रचना
    अच्छा तो लवी अब आंगन तक के सफर पर निकल पडी है.

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  3. उंगली थाम के चली

    आई आँगन में..

    खिलखिलाती रहती है

    अब गालो पे हमारे..

    और मुड़ कर देखती है पीछे...

    जब भी प्यार से

    कोई कहता है... लवी...


    सुन्दर रचना!!!

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  4. लविज़ा यकीनन लाजवाब है...खुदा नज़रे बद से बचाए...
    नीरज

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  5. bahut hi sundar roop se piroya hai aapne apni nanhee lawiza ko shabdon me...aisa laga wo mere samne aa gayee

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  6. कल 31/10/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. प्यारी रचना नन्हीं बिटिया के लिए

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  8. ये नन्ही मुस्कराहट यूँ ही खिलखिलाहट में बदलती रहे

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  9. तारों की पोटली
    खुल कर गिरी है
    जब मिली तो एक तारा कम था
    मध्दम रोशनी में ज़मी पर देखा
    बहुत सुंदर..

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