कभी पैरों में मेरे
अपने नन्हें पांव
रखकर
मेरे हांथ पकड़ती
फिर झूलने की मुद्रा में
लटक जाती
उसे अपने पैरों पे खड़े कर
झुलाते हुऐ देखता
उसका भोला चेहरा
उसकी मासूम मुस्कान
से ज्यादा चमकती
उसकी आंखे
कभी लटक जाती
गले में
अपनी नन्हीं बाहें डालकर
जो मुश्किल से
पहुंचती थी मुझ तक
मैं हंसते हुये
संभालता जब
तो कहती
पापा घोड़ा बन जाओ न
मैं धरती पे टेककर घुटने अपने
बन जाता
नन्हीं परी का घोड़ा ।
कभी लटक जाती
जवाब देंहटाएंगले में
अपनी नन्हीं बाहें डालकर
जो मुश्किल से
पहुंचती थी मुझ तक
मैं हंसते हुये
संभालता जब
तो कहती
पापा घोड़ा बन जाओ न
मैं धरती पे टेककर घुटने अपने
बन जाता
नन्हीं परी का घोड़ा ।
dil ko chhoo gayi yeh kavita...... aur bachpan bhi yaad aa gaya.....
bahut hi behtareen prastuti........
बेहद नन्ही सी प्यारी सी कविता सुन्दर
जवाब देंहटाएंregards
जो मुश्किल से
जवाब देंहटाएंपहुंचती थी मुझ तक
मैं हंसते हुये
संभालता जब
तो कहती
पापा घोड़ा बन जाओ न
मैं धरती पे टेककर घुटने अपने
बन जाता
नन्हीं परी का घोड़ा ।
एक बेहद मासूम भाव से भरी रचना!
behad bhavnatmak kavita
जवाब देंहटाएंBahut badhiya darshaya hai aapne bachchi ka natkhatpan...dhanywad..badhiya kavita..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और हर पापा को घोडा बनना ही पडता है बधाई
जवाब देंहटाएंनन्ही परी के उडान के लिये घोडा बनना ही पडता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता.
जवाब देंहटाएंनन्हीं परी तो शानदार है ही, उसका घोड़ा भी जानदार दिखता है।
जवाब देंहटाएं----------------------------------------
जवाब देंहटाएंऐसे ही कुछ घोड़े यहाँ भी मौज़ूद हैं -
घोड़ा : चलता बहुत मटककर : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत
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