जब भी लड़खड़ा के
मां को जाने
क्यों लगता हैं
मैं गिर जाऊंगी
सच में
अंकल
मैं गिर भी जाती
जब
वो खुद दौड़ पड़ती
अपने गिरने की
परवाह किये बगैर
तब नानी कहती
अरे संभल के
गिर मत
जाना बेटा
पर मां को तो लगता
कहीं मैं रो ना दूं
और मैं मां को दौड़ते देख
चुपचाप एकदम
खामोश रह जाती
तब वह
खुद रो पड़ती
बेटा कहीं लगी तो नहीं
पूछती जाती
और उसके
आंसू बहते जाते .....।
बहुत sentiments से भरपूर रचना.... रोना भी आ गया....
जवाब देंहटाएंभावुक कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कविता एक प्यारे चित्र के संग !
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित हृदयस्पर्शी रचना ...!!
जवाब देंहटाएं~~~मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंसच मे ये माँ बेटी का रिश्ता ही ऐसा है बहुत ही भावनात्मक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमाँ बेटी के भावात्मक सम्बन्ध को अभ्व्यक्त करती एक अच्छी रचना . शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंek se badh kar ek.........behtreen rachnaye
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