शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मां आओ न ...














उसे जब भी
मेरे आंचल में छुपना होता
कहती मां
देखो धूप कितनी तेज है
और मेरे आंचल में
आकर छुप जाती ....
उसकी इस
शैतानी पर मैं
सिर्फ मुस्‍करा के रह जाती ...
उसे जब भी
कुछ खाना होता
बड़े प्‍यार से मेरे पास आती
मां आज तुमने
पानी भी नहीं पिया
तुम्‍हें भूख नहीं लगती
मुझे तो
बहुत जोर की भूख लगी है
थोड़ा खाने को दो न ...
हर समय
वह कोई न कोई
धमाल करती ही रहती
कभी दीदी का
दुपट्टा लेकर आ जाती
मां मुझे
भी साड़ी पहनाओ न ...
जब भी मैं
उसे पढ़ने को कहती तो
वह शुरू हो जाती
वन..थ्री ..सेवन ...टेन ..
बस अब हो गया
पैर पकड़कर शुरू हो जाती
मेरा पैर दुखता है
मां नींद आ रही है
सोने चलो न ....
इसकी शै‍तानियों के आगे
मेरी एक नहीं चलती
जब तक इसकी बात न मानो
सांस नहीं लेती
पुकारती ही रहती
मां आओ न ...मेरी प्‍यारी मां ....

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्यारी माँ...
    बहुत सुन्दर रचना... बिल्कुल माँ की तरह...

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  2. इनकी शैतानियों के आगे कहाँ चलती है..... सुंदर रचना

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  3. बहुत खुब, बहुत अच्छा लेख है।
    मैं एक Social worker हूं और समाज को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां देता हुं। मैं Jkhealthworld संस्था से जुड़ा हुआ हूं। मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप भी इस संस्था से जुड़े और जनकल्याण के लिए स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां लोगों तक पहुचाएं। धन्यवाद।
    HEALTHWORLD

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